Saphala Ekadashi Vrat Katha In Hindi

Saphala Ekadashi is one of the best fast of entire fast, and this new year 2021 this Ekadashi occurs on 09 January 2021. Lets Check out its benefits and vrat katha in Hindi.

There are 26 benefits of observing this Ekadashi fast 

By following and obtaining this Ekadashi Vrat person remains healthy, Happiness is attained, attainment is achieved, disturbance is calmed, poverty is removed, everything lost is regained, fathers get freedom from downfall, luck is awakened, happiness is attained, son is achieved It is destroyed, enemies are destroyed, all diseases are destroyed, fame and fame are attained, Vajpayee and Ashwamedha Yagya get fruit and success in every action. It helps to gets rid of the vagina, demons, demons etc., gets rid of sins, gets rid of crises, proves to be omnipotent, gets good luck, salvation You get marriage interruption ends, money and prosperity comes, peace is found, freedom from attachment and bondage is fulfilled, all kinds of desires are fulfilled.

Lets Read Saphala Ekadashi Vrat Katha in Hindi

आज सफला एकादशी है और इस अवसर पर भगवान विष्णु का व्रत करने की परंपरा है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, यह व्रत पौष माह कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। इसकी महिमा के बारे में भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर और अर्जुन को बताया था। उन्हीं के कहने पर युधिष्ठिर ने इस व्रत का पालन किया और उनके मन का सारा संताप दूर हो गया।
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इस साल दो सफला एकादशी पड़ रहीं। पहली आज है और दूसरी 30 दिसंबर को रहेगी। इस दिन व्रत रखने से पितृ प्रसन्न होते हैं। पितृ दोष संबंधी समस्याओं से मुक्ति मिलती है। सबसे महत्वपूर्ण बात कि कि पहली एकादशी खरमास में पड़ रही। खरमास में भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है।

सफला एकादशी पर सुबह स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। उन्हें पीले रंग के वस्तु और फूल चढ़ाने चाहिए। फिर भगवान लक्ष्मीनारायण की आरती करनी चाहिए। इस दिन दान करने से सारे मनोरथ सफल होते हैं। इससे लक्ष्मी जी का भी आर्शीवाद मिलता है, जिससे धन संबंधी परेशानियां दूर होती हैं।

इस व्रत से जुड़ी एक कथा भी है। चंपावती नगरी में महिष्मत राजा के पांच पुत्र थे। बड़ा पुत्र लुम्भक चरित्रहीन था और हमेशा देवताओं की बुराई करता। मांसभक्षण समेत कई दुर्गणों ने उसके अंदर घर कर लिया था। इससे राजा ने उसे राज्य से बाहर निकाल दिया। लुम्भक जीवन-यापन के लिए अपने पिता के राज्य में ही चोरी करने लगा। एक सिपाहियों ने उसे रंगे हाथ पकड़ा, पर राजा का पुत्र जानकर छोड़ दिया। इस घटना से उसे बहुत ग्लानि हुई और वह वन में जाकर एक पीपल के नीचे रहने लगा। पौष की कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन वह सर्दी के कारण प्राणहीन सा हो गया।

अगले दिन उसे चेतना प्राप्त हुई। तब वह वन से फल लेकर लौटा और उसने पीपल की जड़ में सभी फलों को रखते हुए कहा, ‘इनसे लक्ष्मीपति भगवान विष्णु प्रसन्न हों। तब उसे सफला एकादशी के प्रभाव से राज्य और पुत्र का वरदान मिला। इससे लुम्भक का मन अच्छे की ओर प्रवृत्त हुआ। राजा ने जब उसके सद्गुणों को देखा तो उसे अपना उत्तराधिकारी बना दिया। फिर कुछ समय बाद लुम्भक ने अपने पुत्र मनोज्ञ को राज्यसत्ता सौंप कर खुद विष्णु भजन में लग कर मोक्ष प्राप्त करने में सफल रहा।







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